Happy Chhath Puja 2024 : आस्था और प्रकृति का महापर्व
छठ पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की उपासना और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है। छठ पूजा को मुख्यतः ‘सूर्य षष्ठी’ के नाम से भी जाना जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व शुद्धता, स्वच्छता और अनुशासन का संदेश देता है। छठ पूजा का आयोजन दिवाली के कुछ दिनों बाद किया जाता है, और इस अवसर पर लोग सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करते हैं ताकि उनके परिवार में सुख, समृद्धि और आरोग्य बना रहे ।
छठ पूजा का महत्व :
छठ पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व अत्यंत गहरा है । इसे सूर्य देवता की उपासना के साथ-साथ प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, वायु, और प्रकाश के प्रति आभार प्रकट करने के रूप में देखा जाता है । सूर्य को जीवन का स्रोत माना जाता है, और उनके बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । इस पूजा में सूर्य देवता के साथ छठी मैया की भी उपासना की जाती है, जिन्हें संतान और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है ।
छठ पूजा के दौरान लोग उपवास रखते हैं, और बड़ी आस्था के साथ सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं । यह त्योहार न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है । इसके दौरान लोगों में एकता, सामुदायिकता और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ती है । छठ पूजा का सबसे बड़ा संदेश यह है कि हमें प्रकृति और उसके संसाधनों के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए और उनका संरक्षण करना चाहिए ।
छठ पूजा का इतिहास :
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है और यह वेदों में वर्णित सूर्य उपासना की परंपराओं से निकटता रखता है । इस पर्व का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जहां कुंती ने पांडवों के लिए सूर्य देव की पूजा की थी । इसके अतिरिक्त, कहा जाता है कि सूर्यवंशी राजा राम ने भी अपने राज्य में छठ पूजा का आयोजन किया था, ताकि उनके राज्य में शांति और समृद्धि बनी रहे ।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार, छठ पूजा का आरंभ तब हुआ जब राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी । उन्होंने महर्षि कश्यप से सलाह ली, और उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने का निर्देश दिया गया । इस यज्ञ के परिणामस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, और आभार स्वरूप राजा ने छठ पूजा की शुरुआत की ।
छठ पूजा की परंपराएं और रीति-रिवाज :
छठ पूजा की परंपराएं अत्यंत विशिष्ट और अनुशासनात्मक होती हैं । इस पर्व के चार दिनों के दौरान विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जिनमें शुद्धता, पवित्रता और कठिन उपवास शामिल हैं । आइए इन चार दिनों के क्रम को विस्तार से समझें:
1. नहाय-खाय (पहला दिन)
छठ पूजा के पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है । इस दिन व्रती (व्रत करने वाले) नदी, तालाब या किसी पवित्र जल स्रोत में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन का सेवन करते हैं । इस दिन केवल एक बार खाना खाया जाता है, जो कि पूरी तरह से सात्विक और बिना लहसुन-प्याज का होता है । इस दिन भोजन में चने की दाल, कद्दू की सब्जी और अरवा चावल शामिल होते हैं ।
2. खरना (दूसरा दिन)
दूसरे दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद खरना की पूजा करते हैं । इस दिन शाम को चावल की खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण किया जाता है । खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटों तक बिना अन्न और जल के उपवास रखते हैं ।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
तीसरे दिन व्रती नदी, तालाब या किसी जल स्रोत के किनारे जाकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं । यह पूजा संध्या के समय होती है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं । व्रती बांस की टोकरियों में ठेकुआ, फल, नारियल और अन्य पूजन सामग्री लेकर सूर्य देव को अर्पित करते हैं । इस समय वातावरण भक्तिमय होता है और चारों ओर छठ के गीत गाए जाते हैं।
4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे ‘उषा अर्घ्य’ कहा जाता है । व्रती और उनके परिवार के सदस्य सुबह के समय जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं । इसके बाद व्रतियों का उपवास समाप्त होता है, जिसे ‘पारण’ कहा जाता है । इस दिन लोग एक-दूसरे को छठ पर्व की बधाई देते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं ।
छठ पूजा का प्रसाद
छठ पूजा में बनाए जाने वाले प्रसाद का विशेष महत्व होता है । इस पूजा में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है, और प्रसाद बनाने की प्रक्रिया में बहुत ही पवित्रता और साफ-सफाई का पालन किया जाता है । प्रसाद में मुख्य रूप से ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, नारियल, और मौसमी फल शामिल होते हैं । ठेकुआ को छठ पूजा का मुख्य प्रसाद माना जाता है, जो गेहूं के आटे और गुड़ से बनाया जाता है । यह प्रसाद भक्तों द्वारा भगवान सूर्य और छठी मैया को अर्पित किया जाता है और फिर इसे सभी के बीच बांटा जाता है ।
आधुनिक युग में छठ पूजा
आधुनिक युग में छठ पूजा ने नए आयामों को छू लिया है । यह पर्व अब केवल बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देशभर में और विदेशों में भी मनाया जाने लगा है, जहां प्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में रहते हैं । बड़े-बड़े शहरों में भी छठ पूजा के लिए विशेष घाट बनाए जाते हैं, जहां लोग सामूहिक रूप से पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं ।
इसके साथ ही, छठ पूजा के दौरान स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया जाता है । लोग जल स्रोतों की साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना पूजा का आयोजन करते हैं । इस पर्व में प्लास्टिक की जगह बांस की टोकरियों और मिट्टी के दीयों का उपयोग किया जाता है, जो कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है ।
निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है । यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में अनुशासन, शुद्धता और प्रकृति के प्रति सम्मान रखना चाहिए । छठ पूजा के दौरान की जाने वाली कड़ी तपस्या और उपवास यह दर्शाते हैं कि अगर हम अपने मन और शरीर को नियंत्रित करें तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । छठ का यह महापर्व आस्था, समर्पण और पारिवारिक एकता का प्रतीक है, जो हमें अपने जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि की ओर ले जाता है ।
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है । यह पर्व हमें जीवन में अनुशासन, पवित्रता, और समर्पण का महत्व सिखाता है ।